उत्तराखंड में माउंटेड पुलिस द्वारा उपयोग में लाया जाने वाले घोड़े को बर्बरता पूर्वक पीटा गया, इस घटना में घोड़े ने अपनी जान गवाई और प्रशासन चुप्पी साधे बैठा है

उत्तराखंड के देहरादून में घुड़सवारी पुलिस का घोड़ा जिसका नाम शक्तिमान था, दिनांक 14 मार्च 2016, को सैकड़ों लोगों के सामने पुलिस की उपस्थिति में एवं सरकारी विभाग के कर्मचारियों के सामने मारा गया परंतु प्रशासन द्वारा पशु के साथ की गई क्रूरतापूर्ण रवैये के मामले को लापरवाही द्वारा निपटारा किया गया जिससे कि उत्तराखंड गृह मंत्रालय सरकारी विभाग की गैर-जिम्मेदाराना कार्य को छिपाया जाये और समाज में जवाबदेही से बचा जाये. 

ज्ञातव्य हो कि भाजपा द्वारा आयोजित प्रदर्शन जिसका नेतृत्व भाजपा के विधायक गणेश जोशी कर रहे थे, उन्होंने घोड़े के पिछले पैर पर भारी डंडे से प्रहार किया, जिसके कारण घोड़े का पिछला पैर बुरी तरीके से जख्मी हो गया था. पैर को ठीक करने की कोशिश की गई लेकिन अन्ततः पैर को काटना पड़ा था. बाद में घोड़े को ठीक करने की कोशिश में उसको नकली पैर लगाया गया लेकिन संक्रमण के कारण घोड़े ने दम तोड़ दिया.

बेहद क्रूर और बर्बर हमले की देश के चारों कोने से निन्दा हुई थी. दिखाने के लिए विधायक को गिरफ्तार किया गया था, जिसको कुछ दिनों में जमानत पर रिहा कर दिया गया था. 

ट्रायल कोर्ट में मुकदमें के दौरान भाजपा शासित प्रदेश में पुलिस ने पूरे केस की पैरवी ठीक से नहीं किया, साक्ष्य और गवाहों को जानबूझकर कर ठीक से प्रस्तुत नहीं किया गया, जिसके कारण पुख्ता साक्ष्यों के अभाव में ट्रायल कोर्ट ने भाजपा के विधायक को बरी कर दिया.  

पूरे घटना क्रम को अगर देखा जाए तो पुलिस को पहले इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए था कि हिंसक भीड़ जिसका नेतृत्व खुद भाजपा विधायक कर रहे हों, वहां पर सुरक्षा के इंताजामात रखने चाहिए थे. यह घटना समाज में बढ़ती क्रूरता का शर्मनाक उदाहरण है. इस घटना के जिम्मेदार दोषियों को कड़ा से कड़ा दंड मिलना चाहिए था, जिससे समाज में निरीह जानवरों के प्रति की जा रही हिंसा पर लगाम लगाया जा सके, तथा आगे भी नजीर कायम हो.

अब 2022 में यह मसला उत्तराखंड उच्च न्यायालय में पहुंचा है, जहां से उत्तराखंड सरकार और सभी पक्षों को सम्मन भेजा गया है. उच्च न्यायालयों में न्याय इस लिए मिलना संभव नहीं होता है क्योंकि ट्रायल कोर्ट में प्रस्तुत साक्ष्यों एवं गवाही के आधार पर निर्णय लिया जाता है. यदि साक्ष्य, गवाह और गवाही ठीक से रिकार्ड नहीं हुई है तो हाइकोर्ट में न्याय मिलना संभव नहीं होता है. उच्च न्यायालय बस यह देखती है कि क्या प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर निर्णय न्याय सम्मत है कि नहीं.