सुप्रीम कोर्ट ने आवासीय एवं अन्य क्षेत्रों में सामुदायिक कुत्तों को खाना खिलाने का रास्ता साफ किया, हाईकोर्ट के आदेश पर से रोक हटाई

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम पीपल फॉर एलिमिनेशन ऑफ स्ट्रे ट्रबल्स एवं अन्य – CA No. 5988/2019,  सुप्रीम कोर्ट ने अपना पूर्ववर्ती अंतरिम आदेश वापस ले लिया, जिसके तहत उसने आवारा कुत्तों को खाना खिलाने के अधिकार के संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट के 2021 के फैसले पर रोक लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से बाद कॉलोनियों में आवारा कुत्तों को खाना खिलाने का रास्ता साफ हो गया है.

हाईकोर्ट ने 2021 में अपने आदेश में कहा था कि आवारा कुत्तों को भी भोजन का अधिकार है और नागरिकों को उन्हें (कुत्तों को) खिलाने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) 'ह्यूमैन फाउंडेशन फॉर पीपल एंड एनिमल्स' की याचिका पर चार मार्च को इस आदेश पर यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि इससे आवारा कुत्तों से खतरों की आशंका बढ़ेगी.

जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस. रवीन्द्र भट तथा जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने इन दलीलों का संज्ञान लिया कि हाईकोर्ट का आदेश एक दीवानी मामले में सुनाया गया था, जिसमें दो निजी पक्षकार आमने-सामने थे और एनजीओ को इस मुकदमे में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.

बेंच ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि असली मुकदमे के दोनों पक्षों के बीच विवाद का निस्तारण हो चुका था, इसलिए तीसरे पक्ष के इशारे पर मुकदमे को जारी रखने की जरूरत नहीं थी.

बेंच ने अपने आदेश में कहा कि यह याचिका (हाईकोर्ट के) फैसले के खिलाफ अपील की अनुमति के लिए दायर की गई थी, क्योंकि एनजीओ इस वाद में पक्षकार नहीं था. ऐसा समझा जाता है कि मूल वाद के दोनों पक्षों ने मामला सुलझा लिया था. चूंकि मामला दोनों निजी पक्षों के बीच विवाद को लेकर था, इसलिए एसएलपी दायर करने की अनुमति मांगने का याचिकाकर्ता का कोई अधिकार नहीं है. हम, इसलिए याचिका का निस्तारण करते हैं और अंतरिम आदेश वापस लेते हैं.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ की अपील पर नोटिस जारी करते हुए भारतीय पशु कल्याण बोर्ड, दिल्ली सरकार और अन्य से भी जवाब मांगा था. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि आवारा कुत्तों को भोजन का अधिकार है और नागरिकों को सामुदायिक कुत्तों को खिलाने का अधिकार है. अदालत ने तब कहा था कि इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे दूसरों के अधिकार का हनन न हो और उत्पीड़न न हो, साथ ही किसी के लिए यह परेशानी का सबब न बने.