मध्य प्रदेश राज्य में कुत्तों के प्रति हिंसा को बढ़ाने में संलिप्त सरकारी एवं गैर-सरकारी निकाय के अधिकारी

मध्य प्रदेश में समाज से कुत्तों को हटाने एवं खत्म करने के इरादे से कई सालों से नगर-निगम पशु विभाग द्वारा गैर-कानूनी तरीकों से कुत्तों को जंगलों में छोड़ा गया. कोरोना काल से फिर सड़क के कुत्तों की नसबंदी की आड़ में गैर-कानूनी कार्यों को अनजाम दिया जा रहा हैं. सड़क के कुत्तों को बर्बरता पूर्वक उनके मूल स्थान से उठा कर अन्य जगह पर छोड़ा जा रहा है, ताकि अन्य स्थानों के कुत्तों को आक्रामक किया जा सके जिससे कुत्तों के काटने की प्रवृत्ति को बढ़ाया जा सके और समाज में कुत्तों के आतंक का हंगामा करके गैर-कानूनी कार्यों को छिपाया जा सके. समाज में कुत्तों के प्रति हिंसा को बढ़ा कर कुत्तों की निर्मम हत्या को अंजाम दिया जा रहा हैं.  इन गैर कानूनी गतिविधियों की जानकारी मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री विभाग, नगर-निगम पशु विभाग, NGOs, पुलिस अधिकारी एवं जिला अधिकारियों को दी गई परंतु जानवरों से संबंधित मुद्दों के लिए सरकारी अधिकारियों ने कोई कार्यवाही नहीं की. जिस समय यह घटना घटी उसकी जानकारी नगर निगम पशु विभाग अधिकारियों एवं जिला अधिकारियों के संज्ञान में भी लाया गया परंतु किसी अधिकारी ने कुत्तों की निर्मम हत्या और अधिकारों के हनन को रोकने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की. 

कुत्तों की नसबंदी की आड़ में कुत्तों को पकड़ने के लिए बिना नंबर प्लेट के वाहनों का इस्तेमाल किया गया और आज तक यह सभी कुत्ते वापिस नहीं आये.  समाज में पशु सेवकों द्वारा विरोध करने पर उनके साथ दुर्व्यवहार कर उनको धमकी दी जा रही है कि आप हमारे कार्य में बांधा पहुँचायेंगे तो जिला अधिकारी द्वारा आप पर कार्यवाही की जाएगी और जो पशु-सेवक इन गैर-कानूनी कार्यों में सहयोग नहीं कर रहे,  उनके खिलाफ कानूनी मुकदमा दर्ज कर, पशु हिंसा को समाज बढ़ाया जा रहा हैं. जानवरों एवं पशु सेवकों के अधिकारों का हनन करना, समाज में कानून का खिलवाड़ बनाना, कोर्ट के आदेश की अवमानना करना और अधिकारियों का अपने पदों का इस्तेमाल गलत कार्यों में सहयोग इत्यादि यह सभी प्रकार की घटनाएँ भारतीय दंड संहिता के तहत कानूनी अपराध एवं सार्वजनिक स्थल पर कानून का खिलवाड़ किया जा रहा हैं.

जब सरकारी विभाग ही पशुओं के अधिकारों का हनन कर और क्रूरतापूर्ण कार्यों को अनजाम दे रहे हैं तो समाज में जानवरों के प्रति हिंसा ही बढ़ेगी और हर कोई अपना तर्क देकर बेगुनाह ठहराया जायेगा. पशु इंसानी भाषा का उपयोग नहीं कर सकते, उनकी अपनी प्रकृति, स्वभाव एवं भाषा होती हैं जिसका यहाँ उल्लंघन हो रहा हैं. 

आज की तारीख में पशु सेवकों की काफी कम संख्या एक परेशानी का सबब है, और ऐसी स्थिति में अपराध इतना बढ़ गया है कि जानवरों के अधिकारों का हनन खुले आम हो रहा हैं जिसका पहला गुस्सा पशु सेवक जो कि सड़क के जानवरों को बचाने के लिए सीधे जनता से जुड़े हुए है, इन सभी गैर-कानूनी कार्यों से पशु सेवकों एवं पशु-सहायकों को समाज में मारपीट, झगड़ों एवं आक्रोश इत्यादि समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं.