"बेजबान पशुओं के लिए मानव सहयोग" (human co-operation for stray animals) संस्था पशु कल्याण एवं पर्यावरण संरक्षण पर कार्य करती है. भारतीय अधिनियम कानूनी प्रावधानों पर एक सांविधिक सलाहकार एवं निवारण हेतु संस्था है. यह संस्था पशु सेवकों, पर्यावरण प्रेमियों की सहभागीदारी सुनिश्चित करने तथा एक बड़े मंच में उनकी सहभागीदारी करने के लिए प्रस्तुत है. हम मानव और जानवरों के बीच के आपसी मतभेद को समाप्त करने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि प्रकृति के अस्तित्व को बनाया रखा जाये अतएव यह कार्य आम जनमानस के सहयोग से ही संभव है. संस्था को वर्ष 2012 में स्थापित किया गया था.
अपने स्थापना काल से यह संस्था विभिन्न पर्यावरण एवं पशुओं के मुद्दे पर सक्रिय एवं सहयोगी रही है. उपरांत में इसका पंजीकरण वर्ष 2019 में किया गया जिससे कि पारदर्शिता के साथ नागरिकों ओर परिवेश में सहअस्तित्व और सर्वांगीण विकास में अग्रसर रहे.
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम की आधारशिला वर्ष 1972 (स्टॉकहोम सम्मेलन) में स्टॉकहोम में आयोजित "मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन" को देश में प्रभावी बनाने हेतु किया गया. ज्ञातव्य है कि भारत ने 'मानव पर्यावरण में सुधार के लिये उचित कदम उठाने हेतु आयोजित' इस सम्मेलन में भाग लिया था. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 केंद्र एवं राज्य सरकारों को सभी रूपों में पर्यावरण प्रदूषण को रोकने और देश के विभिन्न हिस्सों में विशिष्ट पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के लिये प्राधिकरण स्थापित करने हेतु अधिकृत करता है. यह अधिनियम पर्यावरण के संरक्षण और सुधार हेतु सबसे व्यापक कानूनों में से एक है.
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत सभी पशुपालकों का कर्तव्य है कि वे पशु का कल्याण सुनिश्चित करने तथा उसे अनावश्यक पीड़ा या यातना न पहुंचाने के लिए समुचित उपाय करें. इस हेतु हमारी संस्था “बेजबान पशुओं के लिए मानव सहयोग” (human co-operation for stray animals) पूरी निष्ठा के साथ इस कार्य में समर्पित है.
सरकार ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 को देश के वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने एवं अवैध शिकार, तस्करी और अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से लागू किया था। जनवरी 2003 में अधिनियम में संशोधन किया गया था और सजा और अधिनियम के तहत अपराधों के लिए जुर्माना और अधिक कठोर बना दिया है। 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से वन और जंगली जानवरों एवं पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया था।
संविधान के अनुच्छेद 51 A (g) में कहा गया है कि वनों एवं वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत अनुच्छेद 48A के मुताबिक, राज्य पर्यावरण संरक्षण व उसको बढ़ावा देने का काम करेगा और देश भर में जंगलों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा की दिशा में कार्य करेगा।
पर्यावरण देश के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को संतुलित करने में एक महत्वपूर्ण और उपचारात्मक भूमिका निभाती है. भूमि, जल, वायु, पेड़-पौधे, मनुष्य एवं जीव-जंतु मिलकर प्राकृतिक पर्यावरण बनाते हैं. हमारे संवैधानिक अधिकारों, मौलिक अधिकार एवं शिष्टाचार की नीति के तहत भारत के सभी नागरिकों को जीव-जन्तुओ एवं पर्यावरण के प्रति सहयोग सभी का कर्तव्य हैं. हम सभी को अपने आस-पास पेड़-पौधे लगाना चाहिए, ताकि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सके है, साथ ही आस-पास रहने वाले जीवों की देखभाल व उन पर होने वाले अत्याचार, पशु क्रूरता एवं पर्यावरण को नष्ट होने से बचाने और उसको और बेहतर बनाने में अपना सहयोग दे अन्यथा भविष्य में हम अपनी युवा पीढ़ी को प्रकृति के अनमोल उपहारों से वंचित कर देंगे.
हम संस्था के माध्यम से आप सभी से अनुरोध करते है इन प्रकृति के उपहारों को बचाने में आप सभी सहभागी बनें !